Wednesday, March 24, 2010

कुछ अशआर

कुछ अशआर

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खामोश निगाहों से बात कर गया कोई

धडकनों से मेरी मुलाकात कर गया कोई

खुशबू-ऐ-इश्क ज़िन्दगी को दे गया कोई

महफ़िल-ऐ-दर्द में तनहा रहा गया कोई

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देर न कर चलने में वर्ना रास्तें खो जायेंगे

मंजिल पे पहुचने की जल्दी न कर वर्ना हमसफ़र खो जायेंगे

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धड़कने नम हो जाती हैं आपके पहलू में आ के

पलके मुस्करा उठती है आपके जाने के बाद

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हम तो चले थे सफ़र में अकेले मगर तनहाई में अकेले रहे न सके

तुम तो रुखसत हुए अकेले मगर हम तो अकेल्र मर भी न सके

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ये तेरे प्यार की इन्तेहाँ थी के अपने साये में तेरे अक्स को महसूस करते रहे

ये तुझ तक पहुचने की शिद्दत थी के कागज की कश्ती पे दरिया को पार करते रहे

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दर्द की कश्ती पे सवार हो के प्यार का समंदर पर किया हमने

आप से मिलने की चाहत में जुदाई का इंतजार किया हमने

तनहाई के अँधेरे सफ़र को आपकी यादों से रोशन किया हमने

मंजील के करीब पहुच कर रास्तों के दूर होने का दुःख महसूस किया हमने

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कुछ तो फासले रहे होंगे वर्ना इतना करीब कोई न होता

कुछ तो अहसास बचा होगा वर्ना यु मुझसे बिछड़ के कोई खुश न होता

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जिस्म से कही ज्यादा अहसास खूबसूरत होता है

नजदीकियों से कही ज्यादा फासलों का असर करीबियां लाता है

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जिंदा रहने की चाहत में दूसरों की जिन्दगिया जीते रहे

प्यार के अहसास को महसूस करने की चाहत में दर्द का सफ़र तय करते रहे

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वो खुबसूरत मंजर वो प्यारी अदा वो महकना तेरा

हम खो न जाये के इस कदर बेपरवाह मेरे करीब आना तेरा

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किश्तों में ख़ुदकुशी करने का अपना मज़ा है

दर्द में डूब के प्यार को महसूस करने का अपना मज़ा है

राहों में चलते चलते मंजिल को भूलने का अपना मज़ा है

जिंदा रहने की चाहत में एक पल में कई बार मरने का अपना मज़ा है

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तू साथ नहीं ये मालूम है मुझे लेकिन धड़कने तुझसे ही बाते करती हैं

ख़ामोशी दर्द का साया बन कर पलकों पे छा जाती है लेकिन तेरी आवाज़ मेरे लबों को चूमती हैं

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धडकनों की नमी पलकों पे सफ़र तय करती हैं और हम जी उठते है

यादों की ख़ामोशी होंठो पे मचलती है और हम गुनगुना उठते है

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अशोक 'नाम'

Tuesday, March 23, 2010

कुछ अशआर

कुछ अशआर:

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खुद को भूलने की ख्वाहिश में उनकी यादों का सहारा लेते रहे
दर्द को महसूस करने की चाहत में खुशियों को बेसहारा करते रहे

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ज़िन्दगी के पहले सिरे की तलाश करते करते उसका आखरी सिरा कही खो गया
धडकनों की आवाज़ सुनते सुनते साँसों का सफ़र कही खो गया

महबूब के इंतजार में यादों का मंजर कहीं खो गया
दिल पे एतबार करते करते 'नाम' का वजूद कही खो गया

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हर मुसाफिर को चलने का हुनर नहीं आता
हर शख्स को जीने का हुनर नहीं आता

हर चाहनेवाले को इंतजार करने का हुनर नहीं आता
'नाम' तुम्हे धडकनों के बिना मरने का हुनर नहीं आता

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सर्द हवाओं में दर्द घूल जाता है
ऐ दिल तू न जाने कब गैरों सा हो जाता है

माना के प्यार जहाँ में सब किया करते हैं
ऐ सनम तू न जाने कब धडकनों में खो जाता है

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ऐ दिल मुझे बार बार उनके दर पे लेके जा वर्ना कही मैं उन्हें भूल न जाऊ
ऐ हवा मुझे मंझधार पे लेके चल वर्ना मैं सहिलो पे डूब के मर न जाऊ

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नए सफ़र को महसूस कर रही है ज़िन्दगी और हम न जाने कौन सी मंजिल पे नज़र लगाये बैठे है
फिर मुस्कुरा रही है ज़िन्दगी औए हम न जाने कौन से एहसास पे कुर्बान हुए जा रहे है

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पलकों पे ख्वाब दम तोड़ते है शायद सीने में जिन्दा है कोई
धडकनों में गम घुलता शायद होंटों पे दर्द बन कर उतरा है कोई

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मुस्कुरा रहा हूँ तेरे आंसू के एक कतरे को पलकों पे रख के
और जी रहा हूँ तेरी यादों के हर लम्हे को धडकनों पे रख के

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अशोक 'नाम'