कुछ अशआर:
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खुद को भूलने की ख्वाहिश में उनकी यादों का सहारा लेते रहे
दर्द को महसूस करने की चाहत में खुशियों को बेसहारा करते रहे
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ज़िन्दगी के पहले सिरे की तलाश करते करते उसका आखरी सिरा कही खो गया
धडकनों की आवाज़ सुनते सुनते साँसों का सफ़र कही खो गया
महबूब के इंतजार में यादों का मंजर कहीं खो गया
दिल पे एतबार करते करते 'नाम' का वजूद कही खो गया
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हर मुसाफिर को चलने का हुनर नहीं आता
हर शख्स को जीने का हुनर नहीं आता
हर चाहनेवाले को इंतजार करने का हुनर नहीं आता
'नाम' तुम्हे धडकनों के बिना मरने का हुनर नहीं आता
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सर्द हवाओं में दर्द घूल जाता है
ऐ दिल तू न जाने कब गैरों सा हो जाता है
माना के प्यार जहाँ में सब किया करते हैं
ऐ सनम तू न जाने कब धडकनों में खो जाता है
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ऐ दिल मुझे बार बार उनके दर पे लेके जा वर्ना कही मैं उन्हें भूल न जाऊ
ऐ हवा मुझे मंझधार पे लेके चल वर्ना मैं सहिलो पे डूब के मर न जाऊ
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नए सफ़र को महसूस कर रही है ज़िन्दगी और हम न जाने कौन सी मंजिल पे नज़र लगाये बैठे है
फिर मुस्कुरा रही है ज़िन्दगी औए हम न जाने कौन से एहसास पे कुर्बान हुए जा रहे है
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पलकों पे ख्वाब दम तोड़ते है शायद सीने में जिन्दा है कोई
धडकनों में गम घुलता शायद होंटों पे दर्द बन कर उतरा है कोई
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मुस्कुरा रहा हूँ तेरे आंसू के एक कतरे को पलकों पे रख के
और जी रहा हूँ तेरी यादों के हर लम्हे को धडकनों पे रख के
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अशोक 'नाम'
Tuesday, March 23, 2010
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