Friday, October 29, 2010

दिल की बस्ती

वक़्त तो गुजर जाता है लेकिन
कुछ लम्हों का सफ़र कभी खत्म नहीं होता


मंजिल तो हासिल हो जाती है लेकिन
सफ़र के खो जाने का डर कभी खत्म नहीं होता

धड़कने तो खामोश हो जाती है लेकिन
पलकों के नम होने का अहसास कभी खत्म नहीं होता

खुशियाँ तो आती जाती हैं लेकिन
दर्द की तन्हाई का आलम कभी खत्म नहीं होता

तमन्नाएं तो जवा रह जाती है लेकिन
हमसफर का इंतजार कभी खत्म नहीं होता

"नाम" की कलम रूक जाती है लेकिन
दिल की बस्ती कभी वीरान नहीं होती

अशोक "नाम"

Thursday, October 28, 2010

कही नहीं हो

ख़ुशी ये नहीं के
तुम्हारी याद साथ है
गम ये हैं के
तुम नहीं हो
कही नहीं हो

तसल्ली ये नहीं के
सांसो का सफ़र साथ है
कमी ये है के
धडकनों में तुम नहीं हो
कही नहीं हो

एहसास ये नहीं के
ज़िन्दगी अब भी है
एतबार ये है के
पलकों पे तुम नहीं हो
कही नहीं हो

उम्मीद ये नहीं के
मंजिल आँखों में बसी है
उदासी ये है के
दर्द में तुम नहीं हो
कही नहीं हो

आरज़ू ये नहीं के
चाहतों में तुम शामिल हो
आलम ये है के
तमन्नाओ में तुम नहीं हो
कही नहीं हो

अफ़सोस ये नहीं के
"नाम" की तुम बेबसी हो
अंजाम ये है के
वफाओ में तुम नहीं हो
कही नहीं हो

अशोक "नाम"

Saturday, October 23, 2010

तेरे बगैर

तेरे बगैर नींदे मेरी जागी रही
तनहा रातों को समझाएं कैसे

तेरे बगैर मजिल मेरी उदास रही
खामोश रास्तों को भूलाएँ कैसे

तेरे बगैर यादें मेरी गुमसुम रही
अधखुली पलकों को रुलाएं कैसे

तेरे बगैर तन्हाई मेरी अकेली रही
बे-जुबान धडकनों को बहलायें कैसे

तेरे बगैर खुशियाँ मेरी जुदा रही
भीगे लम्हों को छुपायें कैसे

तेरे बगैर मौत मेरी रूटी रही
"नाम" ज़िन्दगी के गुजारू कैसे

अशोक "नाम"

Saturday, October 16, 2010

वफ़ा की आहत

मेरे साथ चलने वाले ऐ हमराही
इतना तो बता
वफ़ा की आहत तेरे क़दमों से
आती क्यों नहीं

खुशियों में साथ रहने वाले ऐ हम-सफ़र
इतना तो बता
दर्द की गहराई तेरी धडकनों में
महसूस होती क्यों नहीं

बे-इन्तहा मुहब्बत करने वाले ऐ हम-राज
इतना तो बता
तेरा प्यार मेरे दिल में
उतरता क्यों नहीं

मुझ पे मरना वाले ऐ हम-नवाज
इतना तो बता
तू मेरी ज़िन्दगी में
रहता क्यों नहीं

मेरे करवा-ऐ-सफ़र के अंजान मुसाफिर
इतना तो बता
मुकाम-ऐ-ज़िन्दगी की मजिल
तू बनता क्यों नहीं

मेरी पलकों पे अपने अश्क उतारने वाले बेनाम राही
इतना तो बता
"नाम" की धडकनों में
अपनी तस्वीर बनाता क्यों नहीं

अशोक "नाम"

Friday, October 15, 2010

फासलों की तन्हाई

तेरे वादे पे एतबार नहीं लेकिन
बे-परवाह धडकनों का क्या करे

मंजिल पे कोई तनहा नहीं लेकिन
खामोश रास्तों का क्या करे

हम-सफ़र हम-साया हम-राज कोई भी नहीं लेकिन
दिल की आवारगी का क्या करे

चाहत-ऐ-दर्द का सहारा अब नहीं लेकिन
खुशियों की बेबसी का क्या करे

नजदीकियों का आलम तो रहा नही लेकिन
फासलों की तन्हाई का क्या करे

मौत का आसरा भी बचा नहीं लेकिन
"नाम" की ज़िन्दगी का क्या करे

अशोक "नाम"

मिटटी का जिस्म

मिटटी का जिस्म ले के
दरिया के किनारे हूँ

तूफानों का दामन थामे
बादलों के संग उड़ा हूँ

मंजिल का दर्द लिए
मुसाफिर-सा राह में खड़ा हूँ

खुशियों की तपन के सहारे
मोम-की तरह हर पल पिघला हूँ

यादों की धड़कन संभाले
पलकों की दहलीज पे उतरा हूँ

उनकी ख़ामोशी और ज़िन्दगी
"नाम" मौत को सिने से लगाके जिया हूँ

अशोक "नाम"

Thursday, October 14, 2010

लम्हों का दर्द

वक़्त गुजरता है आहिस्ता आहिस्ता
लम्हे कुछ मगर कटते नहीं

दर्द पिघलता है कतरा कतरा
खुशियाँ मगर दम तोडती नहीं

थम जाते है कदम चलते चलते
मंजिल मगर साथ छोडती नहीं

ज़िन्दगी तमाम होती है मरते मरते
मौत मगर हमसफ़र बनती नहीं

सांसे लडखडाती है संभलते संभलते
एक साया मगर करीब आता नहीं

चाँद उतरता है तनहा तनहा
आसमान मगर महकता नहीं

आँखे नम होती है मद्धम मद्धम
धड़कने मगर तनहा रोती नहीं

प्यार हो जाता है भटकते भटकते
दर्द मगर हासिल होता नहीं

हमसफ़र जुदा होता है मिलते मिलते
मुसाफिर को मगर रास्ता मिलता नहीं

दिल में उठते है तूफा पल पल
पलकों पे मगर धड़कने ठहरती नहीं

ज़िन्दगी बसर होती है महफ़िल महफ़िल
हर शमा पे मगर परवाने जलते नहीं

लहरे मिल जाती है साहिल साहिल
"नाम" को मगर किनारा मिलता नहीं

अशोक "नाम"

Wednesday, October 13, 2010

तुम्हारी कमी

दर्द का तूफ़ान
और
यादों की बारिश

एक पल का अहसास
और
कई लम्हों की नजदीकियां

खुशियों का मिलना
और
अश्कों का पलकों पे उतरना

मंजिल की उम्मीद
और
सदियों का सफ़र

लहरों की खनक
और
किनारों की ख़ामोशी

अपनों की भीड़
और
अजनबी की तरह भटकना

हमसफ़र का बिछड़ना
और
हर मोड़ पे इंतजार

प्यार का मिलना
और
धडकनों की तन्हाई

हवाओं का चलना
और
पत्तों का गिरना

कुछ मिलना की चाहत
और
सब खो जाने का डर

वादों का टूटना
और
इरादों का संभलना

ख्वाबो का बिखरना
और
ज़िन्दगी को समेटना

तन का टूटना
और
मन की उड़ान

दर्द का पिघलना
और
पलकों का संवरना

उम्मीद का आलम
और
आप का दामन

सितारों की चमक
और
चांदनी का अँधेरा

सांसो का सफ़र
और
जिंदा रहने की सजा

सब कुछ तो है
मगर
तुम नहीं हो

"नाम" की ज़िन्दगी
और
तुम्हारी कमी

अशोक "नाम"

Monday, October 11, 2010

ज़िन्दगी का सच

सच तो ये है के जीने की कोई वजह न रही
और सच ये भी है के
जिंदा रहने के अलावा दूसरा कोई विकल्प न रहा

सच तो ये है के मंजिल की कोई जरुरत न रही
और सच ये भी है के
चलते रहने के अलावा मुसाफिर का कोई आसरा न रहा

सच तो ये है के हमसफ़र के मिलने को उम्मीद न रही
और सच ये भी है के
तन्हाई-ऐ-दर्द के अलावा धडकनों का कोई हम-साया न रहा

सच तो ये है के मौत से मिलने कोई चाहत न रही
और सच ये भी है के
इंतजार-ऐ-मुलाकात के अलावा "नाम" का कोई सफ़र न रहा।

अशोक "नाम"

फिर भी

जल रहा हूँ परवाने की तरह मगर
फिर भी मै जिंदा क्यों हूँ

मुस्करा रहा हूँ तन्हाई में मगर
फिर भी सीने में दर्द पिघलता क्यों है

ठहर गया हूँ सफ़र में चलते चलते मगर
फिर भी मंजिल मुझे पुकारती क्यों है

एक खवाब सोया है पलकों के किनारे मगर
फिर भी धड़कने नम होती क्यों है

कुछ फासला है दोनों के दर्मिया मगर
फिर भी नज्दिकिया सिसकती क्यों है

उतर रहा है होंठो पे काफिला यादों का मगर
फिर भी दिल गीत गुनगुनाता क्यों है

मिलता है बस एक हमसफ़र मगर
फिर भी मन मुसाफिर-सा क्यों है

खो जाना है किसी के आगोश में मगर
फिर भी तन मिटटी-सा क्यों है

हो जाना है जमी-दोस्श तुफानो से लड़ कर मगर
फिर भी शाखों पे पत्ते लगते क्यों है

होना है जुदा एक दिन दोराहे पे मगर
फिर भी लोग बिछड़ने से डरते क्यों है

कुछ भी नहीं है ज़िन्दगी में मगर
फिर भी मै सतुष्ट क्यों हूँ

एक खालीपन-सा है अहसास में मगर
फिर भी मै खुश क्यों हूँ

अशोक "नाम"

कोई

मेरी सांसो में ठहरा है कोई
मेरी पलकों पे रहता है कोई

मेरी धडकनों में पिघलता है कोई
मेरे सीने पे जलता है कोई

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वक़्त गुजरता नहीं, दर्द संवरता नहीं,
पलके महकती नहीं, धड़कने नम होती नहीं।

आप मिलते नहीं, सफ़र कटता नहीं,
सांसे थमती नहीं, ज़िन्दगी शुरू होती नहीं।

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पलकों पे दर्द महकता है,
धडकनों में तन्हाई संवारती है,
लबों पे दिल उतरता है,
सांसो में यादें घुलती है।

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बिखरी पड़ी ज़िन्दगी को
समेटते समेटते
मौत भी शामिल हो गए उसमे।

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कब निकल गए दिल से आप
हमें पता भी न चला
और पता चला जब
दूर तक आप का पता न था।

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सब कुछ छुट गया-सा क्यों लगता है,
ये दिल मुझसे खफा-सा क्यों लगता है,
मेरा हमसफ़र जुदा-सा क्यों लगता है,
'नाम' अपनों में अनजाना-सा क्यों लगता है।

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धडकनों की नाराज़गी ने रुला दिया,
आपकी ख़ामोशी ने जीना सिखा दिया,
पलकों के नमी ने हमें हंसा दिया,
"नाम" उसने किश्तों में मरना सिखा दिया।

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मेरी धडकनों को संवारता है कोई,
मेरे दर्द को पुकारता है कोई,
मेरी ज़िन्दगी को जीता है कोई,
मेरे सीने पे मरता है कोई।

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अशोक "नाम"