Friday, May 18, 2007

वो लड़की


तनहा अकेले

पलकों के सहारे

जी रही

वो लड़की


पलकों पे चुभन

सपनों की

चौंक उठती है

वो लड़की


धड़कनों की दहलींज

यादों का मकान

दिल को समझाती

वो लड़की



खुला आसमान

झुकीं पलकें

अशकों को छुपाती

वो लड़की


सूनी डगर

तनहा मंजिल

ददॆ से बातें करती

वो लड़की


अपनों की जुबानीं

सपनों की कहानी

जिंदगी से नज़रें चुराती

वो लड़की


सासों का सफ़र

खुद से बे-खबर

हाथ की लकीरों से लड़ती

वो लड़की


अशोक "नाम"

7 comments:

रंजू भाटिया said...

बहुत ख़ूब आशोक जी ....

अपनों की जुबानीं
सपनों की कहानी
जिंदगी से नज़रें चुराती
वो लड़की

सासों का सफ़र
खुद से बे-खबर
हाथ की लकीरों से लड़ती
वो लड़की

युवराज गजपाल said...

Bahunt badhiya kavita hai Ashoj jee.

ij singh said...

Bahut khoob, Wadi Sai/ Ashok ji,Pl keep it up.

ij singh said...

Bahoot Khoob Ashok bhai, Pl keep it up.

Nesh said...

hi bhaut acha likha hai,keep it up

nitin said...

aap ki kavitavo ki kya tarif karu
kuch kahte huye darata hu...
.....kahi kuch 'shabd' kam na pad jaye!

अशोक लालवानी said...

रंजना जी, युवराज जी, इन्दरजीत जी, नरेश जी और नितिन जी
आप सभी का धन्यवाद़।
आपके शब्दों से जो हौसला मिला है वो मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है।
भविष्य में इसी तरह आप सभी का सहयोग मिलता रहेगा, ऐसी उम्मीद के साथ पुनः धन्यवाद़।