Saturday, May 19, 2007

ग़ज़ल

ग़ज़ल



चाँद कुछ धुंधला-सा था
तुम्हारी नाराज़गी का ख्याल आ गया।


था कशिश का आलम फ़िजा में
जुल्फों के साये में पुरनम का चाँद आ गया।



मंजिल तो थी आप मगर
ये कौन सा मकाम आ गया।



पहुँचना था आप तक मगर
ये कौन हमराह आ गया।



अज़ब नशा था आपकी नज़रों में
आते न आते हाथों में जाम आ गया।




था हाथों में प्यार भरा ख़त
वक्त से पहले मौंत का पैंगाम आ गया।



अशोक "नाम"




(पुरनम का चाँदः आँसूऒं से भिगा खूबसूरत चेहरा)

4 comments:

naman said...

Kya khoob likhte hai aap Ashok sa'ab...
yah humne aapki dusari Ghazal padhi.
pehli thi " वो लड़की " .
Bahut sundar thi...woh ladki bhi aur aap ki kavita bhi!!!
waise 'kavita', 'Ghazal', 'nazm', aur ye sab cheezon me zyada fark nahi maaloom humein!
Lekin sunte/padhte zaroor hai.
Aap bahut achha likhte hai.
G Likhte rahiyega...

अशोक लालवानी said...

नमन जी बहुत बहुत धन्यवाद
आपके शब्दों से जो हौसला मिला है वो मेरे लिए बहुत ख़ुशी की बात है।
भविष्य में इसी तरह आप सभी का सहयोग मिलता रहेगा, ऐसी उम्मीद के साथ पुनः धन्यवाद़।

ऋषिकेश खोडके रुह said...

अशोक जी आप की ग़ज़ल के भाव तो सुंदर है किंतू आप को थोडा और प्रयास करने की आवश्यक्ता है जिसस ग़ज़ल के प्रवाह संबंधी नियम बाधित ना हो.
क़्रृपया इस लिंक के आलेख का जरा अध्ययन कर ले आप की लेखनी मे धार आ जायेगी |

http://www.abhivyakti-hindi.org/rachanaprasang/2005/ghazal/ghazal01.htm

अशोक लालवानी said...

ऋषिकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद...
कोशिश रहेगी रचना में लय बनी रहे।
आपने जो लिंक दिया उसके लिये पुनः धन्यवाद।
भविष्य में इसी तरह आप सभी का सहयोग मिलता रहेगा।