खामोश रात
खामोश रात जब तन्हाई में रोती है
उनकी याद शबनम बन के पलकों पे उतरती है
ये ज़िन्दगी जब मौत के सफ़र पे निकलते है
धड़कन दर्द बन के दिल की दहलीज पे पिएघलती है
अशोक "नाम"
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कोई
कोशिश दर्द को छुपाने की करता है कोई ...
लबो पे फ़साना लाने से डरता है कोई ...
सफ़र में जो साथ था मंजिल पे आके भूल जाता है कोई ...
हर लम्हा हर पल यादें पलकों पे छोड़ जाता है कोई ...
अशोक "नाम"
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दर्द-ऐ-दिल
धडकनों को आंसूओ में भिगोते रहे ,लबो पे मुस्कराहट लाते रहे
दर्द ही दर्द है सांसो में , पलकों पे आपकी तस्वीर लाते रहे
चलते रहे तनहा अकेले बे -खबर , मंजिल को सफ़र में लाते रहे
ख़ामोशी को अपना नसीब मानते रहे , दर्द-ऐ-दिल से गुफ्तगू करते रहे
अशोक "नाम"
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ख़ामोशी
धडकनों में जब दर्द पिएघलता है
पलकों पे वो खवाब बनके उतरता है ...
ज़िन्दगी में जब ख़ामोशी करवट बदलती है
एक आवाज़ सांस बनके जेहन में उतरती है ...
अशोक "नाम"
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बे-रुखी
ज़िन्दगी के इस मोड़ पे ये कैसा वक़्त आया है
दर्द का एक कतरा पलकों पे उतर आया है ...
नहीं रोते थे धडकनों की ख़ामोशी पे
आज आपकी बे-रुखी ने हमें बहुत रुलाया है ...
अशोक "नाम"
Thursday, December 9, 2010
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3 comments:
बहुत खूब ...
आपकी अभिव्यक्ति पसंद आई.......लिखते रहिये!
truly brilliant..
keep writing..all the best
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