Tuesday, November 23, 2010

तलाश-ऐ-आरज़ू

तमाम हो रही है ज़िन्दगी लम्हों के गुजरने के अहसास के साथ
पुकारती है धड़कने तन्हाई में दर्द को पलकों के पास

अजनबी हो रही है मंजिल हमसफ़र के क़दमों की आहट के साथ
गुजरती है सांसें खुशियों के रास्ते लबों के पास

खामोश हो रही है रातें ख्वाबों के सो जाने की उम्मीद के साथ
उठती है लहरें शब्-भर सीने पे नींद के पास

गुमशुदा हो रही है चाहतें तलाश-ऐ-आरज़ू के फ़ना होने के साथ
जलती है शमा हर बार इंतजार में परवाने के पास

हो रही है बेवफा यादें वादों के टूट के बिखरने के साथ
सिसकती है चांदनी चाँद के पहलू में सितारों के पास

हो रही है बेमतलब दुनिया "नाम" के जमीदोश होने के साथ
मुस्कुराती है मौत जन्नत की दहलीज़ पे कफ़न के पास

अशोक "नाम"

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