कुछ कतरे बचे है धडकनों में दर्द के
पलकों से आंसुओ की सदा फिर आती क्यों नहीं
कुछ उम्मीदें बची है ज़िन्दगी में मौत की
तन्हाई में यादों की महक फिर आती क्यों नहीं
कुछ रास्तें बचे है सफ़र में मंजिल के
हमसफ़र के कदमो की आहट फिर आती क्यों नहीं
कुछ फासले बचे है आलम में नजदीकियों के
उस शख्श के आने की उम्मीद फिर आती क्यों नहीं
कुछ लम्हे बचे है सीने पे वक़्त के
सदियों के गुजर जाने की चाहत फिर आती क्यों नहीं
कुछ इरादे बचे है मुहब्बत में "नाम" के
लबों पे खुशियों के बहार फिर आती क्यों नहीं
अशोक "नाम"
Wednesday, November 17, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment