Friday, October 29, 2010

दिल की बस्ती

वक़्त तो गुजर जाता है लेकिन
कुछ लम्हों का सफ़र कभी खत्म नहीं होता


मंजिल तो हासिल हो जाती है लेकिन
सफ़र के खो जाने का डर कभी खत्म नहीं होता

धड़कने तो खामोश हो जाती है लेकिन
पलकों के नम होने का अहसास कभी खत्म नहीं होता

खुशियाँ तो आती जाती हैं लेकिन
दर्द की तन्हाई का आलम कभी खत्म नहीं होता

तमन्नाएं तो जवा रह जाती है लेकिन
हमसफर का इंतजार कभी खत्म नहीं होता

"नाम" की कलम रूक जाती है लेकिन
दिल की बस्ती कभी वीरान नहीं होती

अशोक "नाम"

3 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...

POOJA... said...

bahut pyaaree kavita...
वक़्त तो गुजर जाता है लेकिन
कुछ लम्हों का सफ़र कभी खत्म नहीं होता
best lines...

अशोक लालवानी said...

firdosji aur poojaji shukyiya...