मिटटी का जिस्म ले के
दरिया के किनारे हूँ
तूफानों का दामन थामे
बादलों के संग उड़ा हूँ
मंजिल का दर्द लिए
मुसाफिर-सा राह में खड़ा हूँ
खुशियों की तपन के सहारे
मोम-की तरह हर पल पिघला हूँ
यादों की धड़कन संभाले
पलकों की दहलीज पे उतरा हूँ
उनकी ख़ामोशी और ज़िन्दगी
"नाम" मौत को सिने से लगाके जिया हूँ
अशोक "नाम"
Friday, October 15, 2010
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