वक़्त गुजरता है आहिस्ता आहिस्ता
लम्हे कुछ मगर कटते नहीं
दर्द पिघलता है कतरा कतरा
खुशियाँ मगर दम तोडती नहीं
थम जाते है कदम चलते चलते
मंजिल मगर साथ छोडती नहीं
ज़िन्दगी तमाम होती है मरते मरते
मौत मगर हमसफ़र बनती नहीं
सांसे लडखडाती है संभलते संभलते
एक साया मगर करीब आता नहीं
चाँद उतरता है तनहा तनहा
आसमान मगर महकता नहीं
आँखे नम होती है मद्धम मद्धम
धड़कने मगर तनहा रोती नहीं
प्यार हो जाता है भटकते भटकते
दर्द मगर हासिल होता नहीं
हमसफ़र जुदा होता है मिलते मिलते
मुसाफिर को मगर रास्ता मिलता नहीं
दिल में उठते है तूफा पल पल
पलकों पे मगर धड़कने ठहरती नहीं
ज़िन्दगी बसर होती है महफ़िल महफ़िल
हर शमा पे मगर परवाने जलते नहीं
लहरे मिल जाती है साहिल साहिल
"नाम" को मगर किनारा मिलता नहीं
अशोक "नाम"
Thursday, October 14, 2010
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