Wednesday, November 17, 2010

आंसुओ की सदा

कुछ कतरे बचे है धडकनों में दर्द के
पलकों से आंसुओ की सदा फिर आती क्यों नहीं

कुछ उम्मीदें बची है ज़िन्दगी में मौत की
तन्हाई में यादों की महक फिर आती क्यों नहीं

कुछ रास्तें बचे है सफ़र में मंजिल के
हमसफ़र के कदमो की आहट फिर आती क्यों नहीं

कुछ फासले बचे है आलम में नजदीकियों के
उस शख्श के आने की उम्मीद फिर आती क्यों नहीं

कुछ लम्हे बचे है सीने पे वक़्त के
सदियों के गुजर जाने की चाहत फिर आती क्यों नहीं

कुछ इरादे बचे है मुहब्बत में "नाम" के
लबों पे खुशियों के बहार फिर आती क्यों नहीं

अशोक "नाम"

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