Monday, November 1, 2010

बेनाम हमसफ़र

खामोश राहों में वो चलता है मेरे साथ
तन्हाई बन के

मंजिल पे मुझे कर देता है तनहा
बेनाम बन के

नम यादों में वो रहता है मेरे साथ
हमसफ़र बन के

महफ़िल में "नाम" को कर देता है रुसवा
अजनबी बन के

अशोक "नाम"

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.