सच तो ये है के जीने की कोई वजह न रही
और सच ये भी है के
जिंदा रहने के अलावा दूसरा कोई विकल्प न रहा
सच तो ये है के मंजिल की कोई जरुरत न रही
और सच ये भी है के
चलते रहने के अलावा मुसाफिर का कोई आसरा न रहा
सच तो ये है के हमसफ़र के मिलने को उम्मीद न रही
और सच ये भी है के
तन्हाई-ऐ-दर्द के अलावा धडकनों का कोई हम-साया न रहा
सच तो ये है के मौत से मिलने कोई चाहत न रही
और सच ये भी है के
इंतजार-ऐ-मुलाकात के अलावा "नाम" का कोई सफ़र न रहा।
अशोक "नाम"
Monday, October 11, 2010
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8 comments:
सच तो ये है के हमसफ़र के मिलने को उम्मीद न रही
और सच ये भी है के
तन्हाई-ऐ-दर्द के अलावा धडकनों का कोई हम-साया न रहा
यही सच है ..बहुत खूब ..शुक्रिया
बहुत अच्छा.....धन्यवाद|
bahut sundar rachna
http://videocollectorblog.blogspot.com
नाम साहब,
बहुत ही सुलझी हुई रचनाएँ लिखने के लिए साधुवाद.
शुभकामनाएँ
आप अच्छा लिखते हैं ।जारी रखे। आभार!
aap sabhi ka tahe-dil se shukriya...aap ke sabdo se hausla mila hai likhne ka...koshish rhegi yaha milte rhne ki...
To trust someone means you trust them with your life
To trust someone is based on your clarity of judgement
To trust is to believe that the person has you 100%
To trust
Who could you trust in your greatest moment in need?
Who will be worthy of having your trust?
Will you be able to confide your trust among certain people?
*Advice - Put your trust in a person who isn't a backstaber, liar, thief, gossiper, negative influence, pressured person. Think before you act .
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