Saturday, October 16, 2010

वफ़ा की आहत

मेरे साथ चलने वाले ऐ हमराही
इतना तो बता
वफ़ा की आहत तेरे क़दमों से
आती क्यों नहीं

खुशियों में साथ रहने वाले ऐ हम-सफ़र
इतना तो बता
दर्द की गहराई तेरी धडकनों में
महसूस होती क्यों नहीं

बे-इन्तहा मुहब्बत करने वाले ऐ हम-राज
इतना तो बता
तेरा प्यार मेरे दिल में
उतरता क्यों नहीं

मुझ पे मरना वाले ऐ हम-नवाज
इतना तो बता
तू मेरी ज़िन्दगी में
रहता क्यों नहीं

मेरे करवा-ऐ-सफ़र के अंजान मुसाफिर
इतना तो बता
मुकाम-ऐ-ज़िन्दगी की मजिल
तू बनता क्यों नहीं

मेरी पलकों पे अपने अश्क उतारने वाले बेनाम राही
इतना तो बता
"नाम" की धडकनों में
अपनी तस्वीर बनाता क्यों नहीं

अशोक "नाम"

1 comment:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sab hoga, bhai jaan........thora samay to do, thora soch ko to failao..........pyar bhi hoga......aur wafa bhi!!


bahut khubshurat rachna, dil me utar gayee.......!!