मेरे साथ चलने वाले ऐ हमराही
इतना तो बता
वफ़ा की आहत तेरे क़दमों से
आती क्यों नहीं
खुशियों में साथ रहने वाले ऐ हम-सफ़र
इतना तो बता
दर्द की गहराई तेरी धडकनों में
महसूस होती क्यों नहीं
बे-इन्तहा मुहब्बत करने वाले ऐ हम-राज
इतना तो बता
तेरा प्यार मेरे दिल में
उतरता क्यों नहीं
मुझ पे मरना वाले ऐ हम-नवाज
इतना तो बता
तू मेरी ज़िन्दगी में
रहता क्यों नहीं
मेरे करवा-ऐ-सफ़र के अंजान मुसाफिर
इतना तो बता
मुकाम-ऐ-ज़िन्दगी की मजिल
तू बनता क्यों नहीं
मेरी पलकों पे अपने अश्क उतारने वाले बेनाम राही
इतना तो बता
"नाम" की धडकनों में
अपनी तस्वीर बनाता क्यों नहीं
अशोक "नाम"
Saturday, October 16, 2010
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1 comment:
sab hoga, bhai jaan........thora samay to do, thora soch ko to failao..........pyar bhi hoga......aur wafa bhi!!
bahut khubshurat rachna, dil me utar gayee.......!!
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