तेरे बगैर नींदे मेरी जागी रही
तनहा रातों को समझाएं कैसे
तेरे बगैर मजिल मेरी उदास रही
खामोश रास्तों को भूलाएँ कैसे
तेरे बगैर यादें मेरी गुमसुम रही
अधखुली पलकों को रुलाएं कैसे
तेरे बगैर तन्हाई मेरी अकेली रही
बे-जुबान धडकनों को बहलायें कैसे
तेरे बगैर खुशियाँ मेरी जुदा रही
भीगे लम्हों को छुपायें कैसे
तेरे बगैर मौत मेरी रूटी रही
"नाम" ज़िन्दगी के गुजारू कैसे
अशोक "नाम"
Saturday, October 23, 2010
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1 comment:
achha likha hai aapne
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